तेज प्रताप यादव का निर्दलीय दांव: क्या महुआ से RJD की मुश्किलें बढ़ेंगी?

सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक
सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक

बिहार की राजनीति में फैमिली ड्रामा सीजन 2 शुरू हो चुका है। इस बार लीड रोल में हैं लालू यादव के बड़े साहबजादे और हसनपुर के विधायक तेज प्रताप यादव, जिन्होंने RJD से बाहर होकर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। खास बात यह रही कि ऐलान के दौरान उन्होंने पीले रंग की टोपी पहन रखी थी – यानी अब राजनीति का रंग भी ‘संघर्षशील पीला’ हो गया है।

महुआ में “तेज” का जलवा या जलजला?

तेज प्रताप ने जिस महुआ सीट से निर्दलीय ताल ठोंकी है, वो सीट इस वक्त RJD के मुकेश कुमार के पास है। 2020 में उन्होंने JDU की आश्मा परवीन को 13,000 वोटों से हराया था। लेकिन अब समीकरण बदल रहे हैं। बिहार में 11,000 वोटों से सरकार बनती-बिगड़ती है और तेज प्रताप जैसे नाम अगर 4-5 सीटों पर खेल बिगाड़ें, तो तेजस्वी यादव का सपना भी डगमगा सकता है।

टीम तेज: पार्टी नहीं, पर पार्टी से कम भी नहीं

तेज प्रताप ने भले ही पार्टी लॉन्च से इनकार किया हो, लेकिन टीम तेज नाम से फेसबुक पेज बनाकर युवाओं से जुड़ने की अपील कर दी है। साफ है – वोट बैंक नहीं तो ‘भ्रम बैंक’ तो बना ही लिया है!
टीम तेज आने वाले चुनावों में अलग-अलग सीटों से उम्मीदवार उतार सकती है। यानी राजनीति में ‘तेज’ से अब ‘तपाक’ की राजनीति हो सकती है

तेज प्रताप + चुनाव प्रचार = नुकसान तय!

2019 में जहानाबाद सीट पर अपने करीबी चंद्रप्रकाश को लालू यादव का बेटा बता दिया था (डबल इमोशनल कार्ड)। नतीजा? RJD हार गई, JDU जीत गई – वो भी 1751 वोटों से। उस वक्त भी चर्चा थी कि अगर तेज प्रताप बीच में न आते तो RJD सीट जीत सकती थी।
राजनीति में यही कहते हैं – “सही समय पर गलत बयान, चुनावी चाय में नींबू का काम करता है।”

क्या यह “साधु-सुभाष 2.0” है?

लालू यादव के दौर में साधु और सुभाष यादव भी कुछ ऐसा ही करते थे – पार्टी से बाहर होकर दावा करते कि “RJD को खत्म कर देंगे।”
हुआ? कुछ नहीं हुआ।
लेकिन तेज प्रताप का मामला थोड़ा अलग है – वे सिर्फ बोलते नहीं, भावनाओं के इंस्टाग्राम रील भी बना लेते हैं!

RJD में चिंता: नुकसान कितना गहरा?

अगर तेज प्रताप 4-5 सीटों पर अपना कैंडिडेट उतारते हैं, तो INDIA गठबंधन के वोट बैंक में सेंध लग सकती है।
महुआ जैसी सीट पर अगर 3,000 से 5,000 वोट भी कटे, तो RJD के लिए ये “प्याले में तूफान” नहीं, सीधा वोट बैंक में बाढ़ हो सकती है।
तेजस्वी के लिए यह सिर्फ चुनाव नहीं, “पारिवारिक परसेप्शन” की परीक्षा है।

तेज प्रताप का महुआ से निर्दलीय चुनाव लड़ना एक राजनीतिक ट्विस्ट है, जो RJD के लिए काफी भारी पड़ सकता है।
यह मुकाबला अब केवल वोटों का नहीं, बल्कि परसेप्शन का युद्ध बन चुका है। और अगर तेज प्रताप अपनी टीम के साथ सही माइक्रो मैनेजमेंट करते हैं, तो बिहार की राजनीति में एक नया “पीला पन्ना” जुड़ सकता है।

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